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Navratri 2024 Ma Shailputri ki pooja pratham din hoti hai. Pooja vidhi of Ma shailputri
Ma Shailputri Navratri 2024 – पूजा प्रारंभ 1st Day of Navratri
- घटस्थापना मुहूर्त: 06:12 AM – 10:23 AM (अवधि: 4 घण्टे 11 मिनट)
- अभिजित मुहूर्त: 12:03 PM – 12:53 PM (अवधि: 50 मिनट)
पूजा सामग्री:
- कलश: मिट्टी का कलश, गंगाजल, आम के पत्ते, नारियल, कलावा, मौली, सुपारी, सिक्के
- देवी प्रतिमा: मां शैलपुत्री की प्रतिमा
- पूजा सामग्री: फूल, फल, मिठाई, सुपारी, धूप, दीप, चंदन, रोली, अक्षत, नैवेद्य
- आसन: चौकी, आसन, लाल वस्त्र
- अन्य: दीपक, तेल, रुई, कपूर, घंटी, शंख, मंत्र पुस्तिका
पूजा विधि:
- घटस्थापना:
- कलश को गंगाजल से भरें और उसमें आम के पत्ते, नारियल, कलावा, मौली, सुपारी, सिक्के डालें।
- कलश को लाल वस्त्र पर रखें और उसके चारों ओर मिट्टी के दीपक जलाएं।
- कलश के ऊपर नारियल और सुपारी रखें।
- देवी प्रतिमा स्थापना:
- मां शैलपुत्री की प्रतिमा को चौकी पर स्थापित करें।
- प्रतिमा को फूलों, फल, मिठाई, सुपारी, धूप, दीप, चंदन, रोली, अक्षत, नैवेद्य से अर्पित करें।
- आवाहन:
- मां शैलपुत्री का आवाहन मंत्र बोलें।
ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः।
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
मां शैलपुत्री की कथा:
पौराणिक कथा:
नवरात्रि के पावन पर्व का पहला दिन मां शैलपुत्री की आराधना के लिए समर्पित है। शैलपुत्री, जिन्हें ‘पर्वतराज की पुत्री’ भी कहा जाता है, हिमालय की बेटी हैं और उन्हें दुर्गा का पहला अवतार माना जाता है। उनकी उपासना से भक्तों को शक्ति और साहस की प्राप्ति होती है।
पुराण और प्रतीक:
पौराणिक कथाओं के अनुसार शैलपुत्री माता को कभी भगवान शिव की प्रिय पत्नी सती के नाम से जाना जाता था। जब उनके पिता दक्ष प्रजापति ने शिव का अपमान किया, तो अपमान सहन न कर पाने के कारण सती ने यज्ञ की अग्नि में स्वंय को बलिदान कर दिया। दुःख से व्याकुल होकर शिव, सती की भस्म के साथ संसार में भटकते रहे। पुनर्जन्म में, सती ने हिमालय के राजा हिमावत, जो हिमालय का व्यक्तित्व हैं, के घर पुत्री रूप में जन्म लिया और शैलपुत्री माता कहलाईं।
शैलपुत्री माता को अक्सर एक वृषभ (बैल) की सवारी करते हुए दिखाया जाता है, जो पृथ्वी और उसके प्रचुर संसाधनों के साथ उसके जुड़ाव को दर्शाता है। दहिने हाथ का त्रिशूल बुराइयों से बचाने की उनकी शक्ति को दर्शाता है, तो बाएं हाथ का कमल का फूल पवित्रता और ज्ञान का प्रतीक है।
महत्व और पूजा:
नवरात्रि में पूजी जाने वाली पहली देवी शैलपुत्री माता आशा और दिव्य आशीर्वाद से भरे एक नए चक्र, एक नई शुरुआत की प्रतीक हैं। नवरात्रि के दौरान उनकी उपस्थिति हमें उस शक्ति की याद दिलाती है जो हमारे भीतर है, चुनौतियों से पार पाने और विजयी होने की शक्ति।
आराधना और महत्व:
मां शैलपुत्री की आराधना में विशेष रूप से व्रत और पूजा की जाती है। उन्हें वृषभ पर सवार दिखाया गया है, जो धैर्य और शक्ति का प्रतीक है। उनके दो हाथ हैं, जिनमें वे त्रिशूल और कमल धारण करती हैं। उनकी उपासना से भक्तों को शक्ति, ज्ञान और आत्म-संयम की प्राप्ति होती है।
उत्सव और अनुष्ठान:
- पूजन:
- षोडशोपचार पूजा विधि से मां शैलपुत्री की पूजा करें।
- आरती:
नवरात्रि के पहले दिन, भक्त जल्दी उठकर स्नान करते हैं और मां शैलपुत्री की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाते हैं। वे लाल रंग के वस्त्र पहनते हैं, जो शक्ति और भक्ति का प्रतीक है। पूजा के दौरान, भक्त मां को फूल, फल, और प्रसाद अर्पित करते हैं।
जय शैलपुत्री माता, जय शैलपुत्री माता,
रूप अलौकिक पावन, रूप अलौकिक पावन,
शुभ फल की दाता, जय शैलपुत्री माता।
शैलपुत्री मां बैल पर सवार।
करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी।
तेरी महिमा किसी ने ना जानी॥
पार्वती तू उमा कहलावे।
जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू।
दया करे धनवान करे तू॥
सोमवार को शिव संग प्यारी।
आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो।
सगरे दुख तकलीफ मिला दो॥
घी का सुंदर दीप जला के।
गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं।
प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं॥
जय गिरिराज किशोरी अंबे।
शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो।
भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो॥
जय शैलपुत्री माता, जय शैलपुत्री माता ।
क्षमा याचना मंत्र
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजां श्चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरी॥
मंत्रहीनम क्रियाहीनम भक्तिहीनम सुरेश्वरी। यत्पूजितं मया देवी परिपूर्ण तदस्मतु।
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