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Navratri 2024 Ma Brahmacharini ki pooja dusre din hoti hai, Pooja vidhi of Ma Brahmacharini

Ma Brahmacharini : नवरात्रि का दूसरा दिन माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना
नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। माँ ब्रह्मचारिणी ज्ञान, तपस्या और संयम की देवी हैं। इनकी पूजा करने से भक्तों को ज्ञान, तपस्या और संयम की शक्ति प्राप्त होती है।
माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप:
माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत भव्य और ज्योतिर्मय है। इनके दाएं हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल है। इनके शरीर पर सफेद वस्त्र और गले में मोतियों की माला है।
माँ ब्रह्मचारिणी की कथा:
ब्रह्मचारिणी का अर्थ है “तप की चारिणी” यानी “तप का आचरण करने वाली”। देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में कमंडल धारण किए हैं।
पूर्वजन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था। नारदजी के उपदेश से इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी।
माँ ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की। उन्होंने एक हज़ार वर्ष तक केवल फल-फूल खाकर और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह करते हुए तप किया। तत्पश्चात कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखते हुए खुले आकाश के नीचे धूप और वर्षा के घोर कष्ट सहे। इसके बाद, उन्होंने टूटे हुए बिल्व पत्र खाकर तीन हज़ार वर्षों तक भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। अंत में, उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिया और कई हज़ार वर्षों तक बिना जल लिए और निराहार रहकर तपस्या करती रहीं।
उनकी तपस्या की कठोरता और दृढ़ता से भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने माँ ब्रह्मचारिणी को वरदान दिया। माँ ब्रह्मचारिणी को नवदुर्गा का दूसरा रूप माना जाता है और वे ज्ञान, शिक्षा, और तपस्या की देवी हैं।
माँ ब्रह्मचारिणी ने कठोर तपस्या की। उन्होंने पत्ते खाना भी छोड़ दिया, जिसके कारण उनका नाम अपर्णा पड़ गया। कठिन तपस्या के कारण उनका शरीर क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने उनकी तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया और उनकी सराहना की। उन्होंने कहा, “हे देवी, आज तक किसी ने भी इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की है। यह केवल आपसे ही संभव था। आपकी मनोकामना पूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी आपको पति रूप में प्राप्त होंगे। अब आप तपस्या छोड़कर घर लौट जाएं। जल्द ही आपके पिता आपको बुलाने आ रहे हैं।
ब्रह्मचारिणी देवी ज्ञान, तपस्या और त्याग की देवी हैं। इनकी पूजा से भक्तों को ज्ञान, विद्या, बुद्धि, धैर्य और शक्ति प्राप्त होती है।
नवरात्रि में पूजा:
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन पर होती है।
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि:
- सुबह उठकर स्नान करें
- स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा पर बैठें।
- चौकी पर माँ ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा स्थापित करें।
- कलश स्थापना करें।
- दीप प्रज्वलित करें और नैवेद्य अर्पित करें।
- माँ को पिस्ते की मिठाई का भोग लगाएं।
- उन्हें पान, सुपारी, लौंग अर्पित करें।
- माँ के मंत्रों का जाप करें और आरती करें।
सामग्री
- फूल
- अक्षत
- रोली
- चंदन
- दूध
- दही
- घृत
- मधु
- शर्करा
- दीप
- अगरबत्ती
- फल
- मिठाई
माँ ब्रह्मचारिणी का मंत्र:
- या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
दधाना कर पद्माभ्याम् अक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।। - ब्रह्मचारिणी शीलम यस्या सा ब्रह्मचारिणी।
सच्चिदानन्दा सुशीला च विश्वरूपा नमोस्तुते।। - ओम देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
- मां ब्रह्मचारिणी का स्तोत्र पाठ:
तपश्चारिणी त्वं हि तापत्रय निवारिणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वं हि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शांतिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥ - मां ब्रह्मचारिणी का कवच:
त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।
अर्पण सदा पातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पंचदशी कण्ठे पातु मध्यदेशे पातु महेश्वरी॥
षोडशी सदा पातु नाभो गृहो च पादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।
माँ ब्रह्मचारिणी की आरती:
जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।।
क्षमा याचना मंत्र
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजां श्चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरी॥
मंत्रहीनम क्रियाहीनम भक्तिहीनम सुरेश्वरी। यत्पूजितं मया देवी परिपूर्ण तदस्मतु।
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