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मां सिद्धिदात्रि का स्वरूप
नवरात्रि के नौवें दिन, हम देवी मां सिद्धिदात्रि की पूजा करते हैं। देवी मां का यह रूप अत्यंत शानदार और ज्ञानमयी है। उनकी कृपा से भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। आइए जानते हैं मां सिद्धिदात्रि के स्वरूप, पूजा विधि, महत्व और उनसे जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में।
Ma Siddhidatri Ke swaroop / मां सिद्धिदात्रि के स्वरूप
मां सिद्धिदात्रि स्वर्ण कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। उनका शरीर सुनहरा चमकता है और चारों ओर से प्रकाश की किरणें निकलती रहती हैं। मां सिद्धिदात्रि की चार भुजाएं हैं। दाहिने हाथ में कमल का फूल और त्रिशूल होता है, जबकि बाएं हाथ में शंख और पुस्तक होती है। मां सिद्धिदात्रि सिंह की सवारी करती हैं, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है।
Ma Siddhidatri ki Aarti / माँ सिद्धिदात्री की आरती
Ma Siddhidatri ki katha / मां सिद्धिदात्रि और भगवान शिव की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब समुद्र मंथन के दौरान विष निकला, तो सभी देवता-देवियां और जीव-जंतु भयभीत हो गए। भगवान शिव ने विष का पान कर लिया, जिससे उनका गला नीला हो गया। इसके बाद भगवान शिव कैलाश पर्वत पर चले गए और समाधि में लीन हो गए। देवी पार्वती ने भगवान शिव को मनाने के लिए कठोर तपस्या की। मां सिद्धिदात्रि ने देवी पार्वती को दर्शन दिए और उन्हें बताया कि भगवान शिव को मनाने के लिए उन्हें सिद्धि योग का अभ्यास करना होगा। मां सिद्धिदात्रि की कृपा से देवी पार्वती ने कठिन तपस्या की और भगवान शिव को प्रसन्न किया।
सिद्धिदात्री माता, जो माँ दुर्गा की नौवीं अवतार हैं, सभी प्रकार की सिद्धियों की प्रदाता हैं। नवरात्रि के नौवें दिन उनकी विशेष पूजा की जाती है। इस दिन, शास्त्रोक्त विधि और पूर्ण भक्ति से की गई साधना से साधक को समस्त सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, और वह सृष्टि के हर रहस्य को जानने में सक्षम हो जाता है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार आठ मुख्य सिद्धियाँ हैं – अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, और वशित्व। ब्रह्मवैवर्त पुराण में इन सिद्धियों की संख्या अठारह बताई गई है।
माँ सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियाँ प्रदान करने में सक्षम हैं। देवीपुराण के अनुसार, भगवान शिव ने भी उनकी कृपा से इन सिद्धियों को प्राप्त किया था, जिससे उनका आधा शरीर देवी का हो गया और वे ‘अर्द्धनारीश्वर’ के रूप में प्रसिद्ध हुए। माँ सिद्धिदात्री की चार भुजाएँ हैं, उनका वाहन सिंह है, और वे कमल पर विराजमान होती हैं, उनके एक हाथ में कमल का पुष्प होता है।
हर व्यक्ति को चाहिए कि वह माँ सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करे और उनकी आराधना में लीन रहे। उनकी कृपा से व्यक्ति संसार के दुखों से मुक्त रहकर सभी सुखों का आनंद लेते हुए मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। नवदुर्गा में अंतिम स्थान पर आने वाली माँ सिद्धिदात्री की उपासना से साधक की सभी लौकिक और पारलौकिक कामनाएँ पूरी हो जाती हैं।
उनकी उपासना से भक्त के भीतर कोई भी इच्छा अपूर्ण नहीं रहती। वह सभी विषय-भोगों से ऊपर उठकर देवी के दिव्य लोकों में विचरण करता है, और उनके चरणों का सान्निध्य ही उसके लिए सर्वस्व हो जाता है। इस परम पद को प्राप्त करने के लिए हमें उनकी नियमित उपासना करनी चाहिए। देवी की आराधना से जातक को अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता, दूरश्रवण, परकायप्रवेशन, वाक्सिद्धि, अमरत्व, भावना, सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
आज के युग में भले ही कठिन तपस्या संभव न हो, परंतु अपनी शक्ति अनुसार जप, तप, पूजा-अर्चना करके भी माँ की कृपा प्राप्त की जा सकती है। नवरात्रि के नवमी दिन देवी की भक्ति के लिए उनके श्लोकों का जाप करना चाहिए।
पूजा विधि
- प्रातःकाल स्नान आदि करके मां सिद्धिदात्रि की मन में छवि बनाएं।
- गंगाजल से घर के मंदिर अथवा पूजा स्थान को शुद्ध करें।
- मां सिद्धिदात्रि की मूर्ति या चित्र को पीले वस्त्र के आसन पर स्थापित करें।
- चंदन, रोली, पुष्प, अक्षत, सिंदूर आदि चढ़ाएं। तेल का दीया जलाएं।
- दूध, दही, घी, शहद, और पंचामृत से बनी पंचामृत का भोग लगाएं।
- मां सिद्धिदात्रि को समर्पित मंत्रों और कथा का पाठ करें।
- मां सिद्धिदात्रि की आरती के साथ ही अपनी मनोकामना व्यक्त करें।
मां सिद्धिदात्रि के मंत्र
- “या देवी सर्वभूतेषु सिद्धिदात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥”
- “ओम सिद्धिदात्र्यै नमः”
मां सिद्धिदात्रि की पूजा का महत्व
मां सिद्धिदात्रि की पूजा करने से भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। मां सिद्धिदात्रि मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं और विद्या, धन, और यश प्रदान करती हैं। मां सिद्धिदात्रि की कृपा से भक्तों की सभी बाधाएं दूर होती हैं और उन्हें शक्ति और साहस प्राप्त होता है।
जय मां सिद्धिदात्रि!
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